औरत के जिस्म से निकलकर औरत के हाथों में पलकर कभी गिरकर सम्भल कर , पकड़ा कर उंगली जो खड़ा कर देती है वो मेरी माँ है।। भरी बरसात की रातें या गर्म दोपहरी हो , काँटों की सेज सी मंजिल और सांसे ठहरी हो , तब जो खून...
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